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औरंगाबाद जिले के शहीद जगपति कुमार समेत 7 नौजवान छात्रों ने 11 अगस्त 1942 को अपने प्राणों की आहुति दी थी

 

Shahid Jagpati Kumar's story

स्वाधीनता संग्राम में मातृभूमि के लिए लड़ते हुए बलिदान होनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों की कृतियां अमर हैं. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आज ही यानी 11 अगस्त को सात नौजवान छात्रों ने सचिवालय पर तिरंगा फहराने के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी थी. अंग्रेजों की गोलियों का शिकार होकर सातों युवा भारत माता की बलिवेदी पर शहीद हो गये थे. इन्हें सात शहीद के नाम से जाना जाता है. 


इन सात शहीद में एक औरंगाबाद जिले के ओबरा प्रखंड के खरांटी गांव निवासी जगतपति कुमार भी हैं, जिन्हें उनके छह साथियों के साथ पटना सचिवालय के प्राचिर पर तिरंगा फहराने के दौरान 11 अगस्त 1942 को अंग्रेजों ने गोलियों से भून दिया था. शहीद जगतपति व उनके साथियों की शहादत ने बिहार में अगस्त क्रांति को विशाल रूप दिया. परिणामस्वरूप बिहार में अंग्रेजों की हालत खराब हो गयी. 


जगतपति कुमार का जन्म सात मार्च 1923 को पुनपुन के तट पर बसे खरांटी गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम सुखराज बहादुर था. जगतपति की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल हुई. गांव में पढ़ाई पूरी करने के बाद 1932 में उच्च शिक्षा के लिए पटना चले गये. कॉलेजिएट स्कूल से 1938 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और फिर बीएन कॉलेज में दाखिला लिया.1942 में भारत छोड़ो आंदोलन छिड़ गया और जगतपति कुमार आंदोलन में कूद पड़े.नौ अगस्त को राजेंद्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह नारायण सिंह की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन की चिंगारी भड़क उठी. 


11 अगस्त को छात्रों की टोली सचिवालय पर तिरंगा फहराने के लिए चल पड़ी. छात्रों का समूह जैसे ही सचिवालय के गेट की ओर बढ़ा,वैसे ही अंग्रेज जिलाधिकारी डब्लू जी आर्चर आ धमका और छात्रों पर गोली चलवा दी. एक-एक कर सभी सात नौजवान अंग्रेजों की गोली का शिकार होकर भारत मां की गोद में चीर निद्रा में लीन हो गये.लेकिन इस दौरान आखिरकार छात्रों की टोली तिरंगा फहराने में सफल रही और तिरंगा फहरा कर ही आखिरी सांस ली.


आज के दिन ही सचिवालय पर तिरंगा फहराने के दौरान शहीद हुए थे आजादी के सात दीवाने रोते-रोते अंधे हो गये थे पिता

शहीद जगतपति स्मारक के संरक्षक रामजनम पांडेय बताते हैं कि वह बचपन से ही क्रांतिकारी थे. हमेशा करो या मरो की बात करते थे.जब अगस्त क्रांति के दौरान जगतपति कुमार सचिवालय पर तिरंगा फहराने पहुंचे तो अंग्रेज की पहली गोली उनके पैर में लगी .उन्होंने ललकारते हुए कहा कि पैर में क्यों गोली मार रहे हो.सीने में गोली मारो. 

सात शहीदों में जगतपति कुमार चौथे स्थान पर थे। जगतपति कुमार के पिता सुखराज बहादुर जमींदार थे.उनके तीन संतानें थे. बड़ा बेटा केदार नाथ सिन्हाजो पिता के काम में हाथ बटाता था, दूसरा बेटा सरजू प्रसाद सिन्हा जो असम के हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल भी रहे और तीसरे पुत्र जगतपति कुमार थे जो पटना बीएन कॉलेज में साइंस के विद्यार्थी थे.बेटे के शहीद होने के बाद सुखराज बहादुर रोते-रोते अंधे हो गये थे.

शहीद के घर में उगी झाड़ियां

जगतपति कुमार की शहादत के बाद बना स्मारक आज सरकार की उदासीनता के कारण अपनी पहचान खो रहा है.शहीद का घर भी खंडहर में तब्दील हो चुका है. घरों में हर तरफ झाड़ियां उग आयी हैं, जिसमें सांप-बिच्छुओं का डेरा बना हुआ है.सरकारी लापरवाही की वजह से शहीद का धरोहर जमींदोज होती जा रहा है. यहां सरकारी कार्यक्रम का आयोजन तक नहीं होता है. केवल चंद स्थानीय विद्यालय के शिक्षकों व बुद्धिजीवी वर्ग के कुछ लोग पहुंच कर शहीद को पुष्प माला अर्पित करते है. मुख्यतः छात्र-छात्राओं के द्वारा ही श्रद्धांजलि दी जाती है.

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