देव सुर्य मंदिर : यहीं से हुई है छठ व्रत की शुरुआत, जानिए देव सूर्य मंदिर से जुड़ी रोचक जानकारी, देव सूर्य मंदिर का इतिहास
Deo surya mandir |
जंबूद्वीप में तीन ऐसे की किरण पहुंचती है. इसमें ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर, बिहार का देव सूर्य मंदिर व पाकिस्तान का मुल्तान सूर्य मंदिर शामिल है. भविष्य पुराण में इन तीनों जगहों की प्रमाणिक व्याख्या है. ज्योतिषाचार्य पंडित सतीश पाठक का कहना है कि भविष्य पुराण में जम्बूद्वीप पर इंद्र वन, मित्र वन व मुंडिर वन का उल्लेख हैं, जहां सूर्योदय के बाद सीधे सूर्य की पहली किरण पहुंचती है. प्राचीन काल में देव को इंद्र वन, कोणार्क को मित्र वन व मुल्तान को मुंडिर वन के रूप में जाना जाता था. इन तीनों जगहों पर स्थित सूर्य मंदिर में विराजमान बिरंचिनारायण का सबसे पहले सूर्य की रोशनी से अभिषेक होता है.सर्योदय और सूर्यास्त के वक्त इन तीनों जगहों की छटा देखती ही बनती है. इतना ही नहीं सूर्य मंदिर के साथ-साथ यहां स्थित सूर्यकुंड तलाब का तार सीधे समुद्र से जुड़ा हुआ है. इसी कारण जहां पूरे औरंगाबाद जिले का पानी मीठा है. वहीं केवल देव में दो-तीन किलोमीटर के क्षेत्र में पानी खारा मिलता है. मंदिर के आसपास व देव बाजार में विभिन्न जलाशय व चापाकल में निकलने वाले पानी का स्वाद खारा है. करीब चार किलोमीटर दूर देव मोड़ पर पानी का स्वाद बिल्कुल बदल जाता है. सूर्य कुंड तालाब समुद्र से जुड़ा होने के कारण समुद्र का प्रतिबिंब है.अगर समुद्र में किसी प्रकार की हलचल होती है, तो उसका सीधा असर सूर्यकुंड तालाब में देखने को मिलता है. मान्यता है कि छठ की शुरुआत देव से ही हुई थी.
इस बार छठ में होगी भारी भीड़:
देव सूर्य मंदिर देश की धरोहर एवं अनुठी विरासत है. हर साल छठ पर्व पर यहां लाखों श्रद्धालु छठ करने झारखंड, मध्य प्रदेश, उतर प्रदेश समेत कई राज्यों से आते हैं. कहा जाता है कि जो भक्त मन से इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यहां मंदिर के समीप स्थित सूर्यकुंड तालाब का विशेष महत्व है. इस सूर्यकुंड में स्नान कर व्रती सूर्यदेव की आराधना करते हैं. इस बार कोरोना का हाल के लंबे वक्त के बाद सूर्य नगरी गुलजार रहने वाला है. इस बार करीब पांच लाख श्रद्धालु छठ करने देव पहुंचेंगे. वैसे प्रशासन ने मेला पर रोक लगा रखा है. बावजूद इसके बार अच्छी भीड होने की संभावना है.
Talab kund |
अदिति ने तेजस्वी पुत्र के लिए कीथी आराधना
मान्यता है कि देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी. तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप आदित्य भगवान हुए, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी.कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया.
तीनों स्वरूपों में विराजमान हैं सूर्य देव
देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल और अस्ताचल के रूप में विद्यमान है. बिना सीमेंट या चूना-गारा का प्रयोग किये आयताकार, वर्गाकार, आर्वाकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गये पत्थरों को जोड़ कर बनाया गया यह मंदिर अत्यंत आकर्षक एवं विस्मयकारी है.
राजा ऐल को कुष्ठ रोग से मिली थी मुक्ति
तत्कालीन राजा ऐल एक बार देव इलाके के जंगल में शिकार खेलने गये थे. शिकार खेलने के समय उन्हें प्यास लगी उन्होंने अपने आदेशपाल को लोटाभर पानी लाने को कहा.आदेशपाल पानी की तलाश करते हुए एक पानी भरे गड्ढे के पास पहुंचा. वहां से उसने एक लोटा पानी लेकर राजा को दिया. राजा के हाथ में जहां-जहां पानी का स्पर्श हुआ, वहां का कुष्ठ ठीक हो गया. राजा ने बाद में उस गड्ढे में स्नान किया और उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया. उसके बाद उसी रात जब राजा रात में सोये हुए थे, तो सपना आया कि जिस गड्ढे में उन्होंने स्नान किया था, उस गड्ढे में तीन मूर्तियां हैं. राजा ने फिर उन मूर्तियों को एक मंदिर बना कर स्थापित किया.
देव को स्नान कराकर सुनाया जाता है आदित्य हृदय स्त्रोत
मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक व नरोत्तम पाठक ने बताया कि प्रत्येक दिन सुबह चार बजे भगवान को घंटी बजा कर जगाया जाता है. उसके बाद पुजारी भगवान को नहलाते हैं, ललाट पर चंदन लगाते हैं, नया वस्त्र पहनाते हैं. यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है. भगवान को आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ सुनाया करते है.यूं तो साल भर देश के विभिन्न जगहों से लोग इस मंदिर में आते हैं और मनौतियां मांगते हैं, लेकिन छठ के मौके पर यहां खूब भीड़ जुटती है. मनौती पूरी होने पर यहां लोग सूर्यदेव को अर्घ देने आते हैं.
विश्वका एकमात्र पश्चिमोभिमुखसूर्य मंदिर
देव स्थित सूर्य मंदिर विश्व का एकमात्र पश्चिमोभिमुख सूर्य मंदिर है. इस मंदिर की स्थापत्य कला बेजोड़ है.ये हूबहू कोर्णाक के मंदिर की तरह बनाया गया है. यह ऐतिहासिक त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर अपनी विशिष्ट कलात्मक भव्यता के साथ-साथ अपने इतिहास के लिए भी विख्यात है.औरंगाबाद से 18 किलोमिटर दूर देव स्थित सूर्य मंदिर करीब 100 फुट ऊंचा है, जो काले और भूरे पत्थरों की नायाब शिल्पकारी से बना है. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था. मंदिर के बाहर लगे शिलालेख के अनुसार, मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला-पुत्र पुरुरवा ऐल ने करवाया था. शिलालेख से पता चलता है कि वर्ष 2021 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल को एक लाख पचास हजार 21 वर्ष पूरे हो गये हैं. वैसे इस मंदिर के रातों रात दिशा बदलने की किदवंती भी है.
कहा जाता है कि जब मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिरों को तोड़ने का अभियान चला रखा था तो इसी क्रम में वह देश के समस्त मंदिरों को तोड़ता हुआ देव पहुंचा.जब ब्राह्मणों ने उससे विनती की तो उसने रात भर का समय दिया और कहा कि अगर रात भर में मंदिर का द्वार पूर्व से पश्चिम की ओर हो जायेगा तो वह इस मंदिर को छोड़ देगा. सभी पूजापाठ में लग गये और सुबह जब देखा तो मंदिर का मुख परिवर्तित हो गया था.
अपना मन्नत पूरी होने पर कई लोग दूर दूर से यहां आते है
सूर्य नगरी देव में बिहार के विभिन्न जिलों के अलावा छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल के अलावा अन्य प्रदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचे हैं. कई परिवार मन्नतें पूरा होने के छठ कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के चंदौली निवासी उतम साह, सुरेश प्रसाद व मनोरमा देवी मन्नतें पूरी होने पर देव में आकर सूर्योपासना कर रहे हैं. इनके अलावा भी कई अन्य परिवार यहां पूरी आस्था व निष्ठा से छठ पूजा कर रहा है ऐसा ही एक अरवल के कुदरासी गांव निवासी मनीष का परिवार है.मनीष के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.चूल्हा जलना भी मुश्किल हो गया था. इसके बाद मनीष ने भगवान सूर्य से आशीर्वाद मांगा कि यदि सबकुछ ठीक हो जायेगा, तो परिवार समेत देव में आकर छठ करेगा.झारखंड के साहेबगंज की निर्मला सिंह ने नौकरी लगने की मन्नतें की थी.बैंक में नौकरी लगने जाने के बाद इस बार वह परिवार समेत यहां आयी हैं और सूर्य की उपासना कर रही हैं.छतीसगढ़ के कोरबा निवासी विनोद गुप्ता का परिवार बीमार से जूझ रहा था. परिवार के सदस्य किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त थे. भगवान सूर्य से आशीर्वाद मांगा और ठीक होने पर देव में आकर छठ करने की मन्नतें की थी.भगवान भास्कर का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और सभी स्वस्थ हो गये.
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