जिले में शक्ति पूजा की परंपरा प्राचीन, मंदिरों में मिलते है साक्ष्य, कुछ मंदिरों का वैदिक काल का है इतिहास
सतबहिनी मंदिर |
आज से प्रारंभ होने वाले नवरात्र के दौरान विभिन्न रूपों में शक्ति की पूजा होगी. वैसे जिले में शक्ति पूजा की परंपरा प्राचीन काल की है. यहां कई ऐसे स्थान हैं, जहां शक्ति पूजा की पुरानी परंपरा के साक्ष्य नजर आते हैं. नवीनगर प्रखंड के गजना धाम, मदनपुर का उमगा, अंबा का सतबहिनी मंदिर व देव सूर्य मंदिर जिले की उस सुदीर्घ शक्ति पूजा परंपरा की ही सबसे विशिष्ट कड़ी है, जो प्रचीन काल से इस इलाके के धार्मिक-सांस्कृतिक विश्वासों और मान्यताओं को प्रभावित करती रही है.
इन सभी स्थलों में कायम सदियों पुरानी शक्ति पूजा परंपरा के प्रति जिलेवासियों के मन मस्तिष्क में गहरी आस्था है. नवीनगर प्रखंड के गजना धाम को एक प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है. यहां देवी की पूजा मां गजनेश्वरी के रूप में बेहद परंपरागत तरीके से की जाती है. आज भी माता गजनेश्वरी की पूजा में धातु से बने बर्तनों का उपयोग नहीं किया जाता. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आदिवासी और जनजातीय क्षेत्र रहा यह स्थल प्रचीन समय से चली आ रही शक्ति पूजा की परंपरा का प्रधान केंद्र रहा.
इतिहासकार इसकी स्थापना संभवतः मगध में आर्यों के प्रसार होने से पूर्व की मानते हैं. गजना धाम वैदिक काल के भी पहले का भक्ति स्थल हो सकता है. ऐसा इतिहासकारों का मानना है.
प्रचलित है शक्ति पूजा : मदनपुर के उमगा पहाड़ी पर जिले में सदियों पुरानी शक्ति पूजा की परंपरा के चिन्ह नजर आते हैं. इस पहाड़ी पर मंदिरों का एक भव्य परिसर है. गया के प्राचीन मंगला गौरी और सासाराम में स्थित ताराचंडी धाम के मध्य स्थित उमगा में वैसे तो सूर्य, भौव और भागवत परंपरा के भी कई पुरावशेष मिलेहैं , लेकिन इस पहाड़ी पर शक्ति पूजा की भी तांत्रिक व मंत्रिक दोनों परंपराएं प्रचलित रही है.
पुजारी बालमुकुंद पाठक बताते हैं कि यहां माता दुर्गा से लेकर काली और महिषासुर का संहार करने वाली देवी की कई प्राचीन प्रतिमाएं विराजमान है. इनका निर्माण आठवीं सदी के आसपास माना जाता है. एक विशाल पत्थर के नीचे मां मुंडेश्वरी की प्रतिमा स्थापित है. पहाड़ की चोटी पर विशाल शीला से बना एक द्वार है, जिससे पूर्व में कायम यहां बलि प्रथा के भी संकेत माने जाते सकते हैं. वैसे आज भी यहां पशु बलि बलि प्रथा जारी है. उमगा के ध्वस्त मंदिर में कुछ ऐसी विलक्षण देवी प्रतिमाएं हैं, जिसमें माता पार्वती को शिव की योग मुद्रा पर आश्चर्य जताते दिखाया गया है. इस प्रतिमा को ध्यान से देखने में मां काली की छवि नजर आती है, जिसे शक्ति पूजा परंपरा की साक्षी मानी जा सकती है.
अंबा नाम से मिलते हैं शक्ति पूजा परंपरा के संकेत :
आस्था व अंधविश्वास का अद्भुत संगम है महुआ धाम
शारदीय नवरात्र के दौरान कुटुंबा के महुआधाम में लगने वाला मेला आस्था और अंधविश्वास का अद्भुत संगम है. यहां अष्टभुजी मां दुर्गा की पूजा आराधना के लिए श्रद्धालु आते हैं. जिले के अलावा बिहार तथा अन्य प्रदेशों के विभिन्न जगहों से प्रेत बाधा से मुक्ति पाने के लिए यहां पहुंचते हैं. महुआ धाम में अष्टभुजी मां दुर्गा के अलावा बजरंगबली, भगवान शंकर, कुमारी माई, ब्रह्म बाबा व जीन बाबा की पूजा होती है.
वैसे तो यह स्थल किसी रहस्यमई से कम नहीं है, लेकिन यहां आयीं दुबली-पतली महिलाओं को करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित ओरडीह पहाड़ की ऊंची चोटियों पर दौड़ते हुए चले जाना और फिर वहां से बड़ा पत्थर लेकर दौड़ते चले आना आदि को देखकर आश्चर्य जरूर होता है. 21वीं सदी के इस दौर में इस पर विश्वास करना थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन महुआधाम मेले के प्रति लोगों की आस्था कम होती नहीं दिख रही. यहां उमड़ने वाली भीड़ यह बताने के लिए काफी है.
सुबह 11:36 से 12:24 तक कलश स्थापना का शुभ मुहुर्त,आज शैलपुत्री की पूजा
शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है.आज से शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होगी.अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना के साथ पूजा प्रारंभ होगी. जिलेभर में मंदिरों व घरों में धार्मिक महौल के बीच पूरी श्रद्धा भक्ति से श्रद्धालु विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ कलश स्थापना करेंगे.साथ ही अखंड ज्योति जलायी जायेगी. कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के पहले दिन नौ दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होगी.
मां की पूजा को लेकर सारी तैयारियां हो गयी है.शहर के सभी मंदिरों व दुर्गा पंडालों में नौ दिनों तक भगवती विराजमान रहेंगी.सभी जगह दुर्गासप्तसती का पाठ प्रारंभ हो जायेगा. श्रद्धालु मंदिरों के अलावे अपने-अपने घरों में भी पूरे भक्तिभाव से मां की महिमा का पाठ करेंगे.ज्योतिषाचार्य पंडित सतीश पाठक ने बताया कि सुबह 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक अभिजीत मुहुर्त में कलश स्थापना का शुभ मुहुर्त है. इस मुहुर्त में कलश स्थापना बेहद शुभ फलदायक माना जाता है.
शहर के क्लब रोड स्थित दुर्गा मंदिर में महावीर क्लब द्वारा नवरात्र की पूजा की जा रही है. क्लब के अध्यक्ष कपिल कुमार ने बताया कि पूजा की सारी तैयारियां पूरी कर ली गयी है. दिन में विधिवत पूजा अर्चना के साथ दुर्गासप्तसती का पाठ किया जायेगा. शाम में आरती होगी.
ऐसे करें कलश स्थापना
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले उस स्थान की सफाई करें जहां आप माता की पूजा करना चा हते हैं.पंडित सतीश पाठक ने बताया कि कलश स्थापना के लिए एक चौकी पर नया लाल वस्त्र बिछाकर माता की तस्वीर स्थापित करें और भगवान गणेश को याद करते हुए उनसे अपने पूजन कार्य को निर्विघ्न पूर्ण करवाने की प्रार्थना करें.इसके बाद सबसे पहले मां दुर्गा की तस्वीर के सामने अखंड ज्योति जला दें.एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें, उसमें जौ के बीज डालें.एक कलशया घर के लोटे को अच्छे से साफ करके उसपर कलावा बांधे स्वास्तिक बनाएं और कलश में थोड़ा गंगा जल डालकर पानी भरें.इसके बाद कलश में साबुत सुपारी, अक्षत और दक्षिणा डालें. फिर कलश के ऊपर आम या अशोक के पांच पत्ते लगाएं और कलश को बंद करके इसके ढक्कन के ऊपर अनाज भरें.अब एक जटा वाले नारियल को लाल चुनरी से लपेटकर अनाज भरे ढक्कन के ऊपर रखें. अब इस कलश को जौ वाले मिट्टी के पात्र के बीचोबीच रख दें.इसके बाद सभी देवी और देवता का आवाह्न करें और माता के समक्ष नौ दिनों की पूजा और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद विधिवत पूजा प्रारंभ करें.
Post a Comment for "जिले में शक्ति पूजा की परंपरा प्राचीन, मंदिरों में मिलते है साक्ष्य, कुछ मंदिरों का वैदिक काल का है इतिहास"