शिक्षक दिवस : सनातन काल से अब कितनी बार बदली शिक्षा का रूप, डिजिटल होने लगा शिक्षा
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Teachers day |
शिक्षा और शिक्षण का स्वरूप देशकाल-परिस्थिति के मुताबिक समायोजित होता रहा है. वैदिक काल में गुरुकुल की परंपरा थी जहां आश्रमों में विद्यार्थी अंतेवासी बन कर गुरु के संपूर्ण सान्निध्य में शिक्षा प्राप्त करते थे. विद्यार्थी वेदों की ऋचाओं का पठन करते थे. शिक्षाविद, लेखक व वरिष्ठ पत्रकार राकेश कुमार पांडेय बताते हैं कि मध्यकाल में देश में आक्रांताओं का घुसपैठ हुआ, तो शिक्षा के स्वरूप व माध्यम के साथ शिक्षण संस्थाओं के स्वरूप में बदलाव आ गया. अंग्रेजों के भारत आगमन के बाद एक बार फिर शिक्षा और शिक्षण संस्थाओं के स्वरूप में परिवर्तन हुआ. उनकी शिक्षा नीति में मैकाले के दृष्टिकोण को प्रश्रय मिला और आधुनिक शिक्षा के नाम पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए क्लर्क पैदा करने की शुरुआत हो गयी.
शिक्षा से आध्यात्मिक और नैतिक पक्षों को उपेक्षित कर गुरुकुल आधारित शिक्षा पद्धति को आज्ञा दे दी गयी. वर्तमान में शिक्षा में तकनीक के समावेश के साथ शिक्षा और शिक्षण संस्थानों के आयाम को बहुआयामी बना दिया है. शिक्षा का स्वरूप पूरी तरह डिजिटल हो गया है. अब शिक्षण संस्थाओं व शिक्षकों की सीमाएं और वर्जनाओं को मिटा दिया गया है. शिक्षक डिजिटल होने के साथ-साथ ग्लोबल हो गये और विद्यार्थी कैंपस की शिक्षा से निकल कर ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. कोरोना ने कैंपस की शिक्षा की जगह ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा की गति को एकाएक तेज कर दिया या यूं कहा जाये तो विगत दो सालों में इसे स्थापित सत्य की ओर अग्रसर करा दिया. लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन कभी भी कैंपस एजुकेशन का पूर्ण विकल्प नहीं हो सकता है.
लाल गलियारों में 23 वर्षों से निःशुल्क शिक्षा का अलख जगा रहे हैं नंदन
कुटुंबा प्रखंड के डुमरी गांव के रहनेवाले शिक्षक नंदन ठाकुर लगातार पिछले 23 वर्षों से लाल गलियारों में निःशुल्क शिक्षा का अलख जगाने में जुटे हैं.
श्री ठाकुर मिडिल स्कूल मंझौली में सरकारी शिक्षक के रूप में पदस्थापित हैं.स्कूल टाइम के बाद सुबह शाम यहां गांव की गलियों में ही बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है आज के आधुनिक परिवेश में भी शिक्षक नंदन की क्लास में न तो वर्ग कक्ष की व्यवस्था है, और नही बच्चों को बैठने के लिए बेंच टेबल की. फिर भी आसपास के सैकड़ों बच्चे सुबह व शाम को शिक्षा लेने पहुंचते हैं. बच्चे बैठने के लिए खुद घर से बोरा लेकर आते हैं, जिसे घर के सामने गांव की गली में बिछा कर बैठ कर पढ़ाई करते हैं. इनके द्वारा 10वीं, 11वीं एवं 12वीं कक्षा के बच्चों को हिंदी व संस्कृत पढ़ायी जाती है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रखंड का डुमरी गांव जो पहाड़ की तलहटी एवं जंगली इलाकों से घिरा है. उक्त इलाकों में नक्सलियों का प्रभाव अधिक देखा जाता था.आज नंदन की निःशुल्क पाठशाला की देन है कि हजारों बच्चे उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं.और कई बच्चे सरकारी महकमें में ऊंचे पद पर कार्यरत हैं. नंदन की इस अनोखी पहल की सराहना लोग करते नहीं थकते हैं. नंदन ने बताया कि सुबह एवं शाम दोनों बैच में 300 बच्चे आकर पढ़ते है।
नौकरी नहीं आयी रास, यूपीएससी व अन्य परीक्षाओं की तैयारी कराने लगे
कुटुंबा प्रखंड के अभिनय कुमार यूपीएस, बीपीएस व अन्य परीक्षा का आनलाइन तयारी काराने में जुटे हैं. यूट्यूब पर अभिनव के 52000 व टेलीग्राम ग्रुप में 9000 से अधिक व्यूवर्स हैं. अभिनव घर से यूपीएससी की तैयारी करने दिल्ली गये थे.इस दौरान 2019 में उन्होंने यूपीएससी के मेंस में सफलता हासिल की और फिर 64वीं बीपीएससी में बतोर रेवन्यू अधिकारी के रूप में चयन हुआ.इस बीच पिछले वर्ष मार्च-अप्रैल में एक नया मोड़ आया और ऑनलाइन दूसरों को तैयारी कराने में जुट गये.
अभिनव ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान घर में बैठ कर तैयारी से संबंधित वीडियो बनाया और उसे यूट्यूब पर डाला.दोस्तों से अच्छा रिस्पांस मिला तो ऑनलाइन तैयारी कराने लगे.इसके बाद कई बड़े संस्थानों से उन्हें ऑफर आने लगे.अभिनव ने बताया कि अलग अलग राज्य के लिए टेलीग्राम पर 50 से अधिक ग्रुप बनाया है, जिससे हजारों लोग जुड़ कर यूपीएससी बीपीएससी समेत कई परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने संदीवा नेटवर्क नाम से आइएएस कोडीडोर भी बनाया है. अभिनव कहते हैं कि ऑनलाइन तैयारी कराने वाले बड़े बड़े संस्थान में छोटे शहरों के विद्यार्थी नहीं जुड़ पाते है, उनका शुल्क भी काफी अधिक होता है, जिसे ग्रामीण क्षेत्र के लोग वहन कर पाते हैं.
मिडिल स्कूल कुटुंबा के प्रधानाध्यापक चंद्रशेखर को मिलेगा राज्य बाल अधिकार संरक्षण पुरस्कार
बेहतर शैक्षणिक गतिविधि आयोजित करने को लेकर कुटुंबा प्रखंड के मिडिल स्कूल रसलपुर के शिक्षक जितेंद्र कुमार सिन्हा को राजकीय शिक्षक अवार्ड से सम्मानित किया जायेगा. वहीं कन्या मिडिल स्कूल कुटुंबा के प्रधानाध्यापक चंद्रशेखर प्रसाद साहू को राज्य बाल अधिकार संरक्षण सम्मान 2021 पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है. श्री साहू को पिछले वर्ष राजकीय शिक्षक सम्मान से सम्मानित किया गया था. इनके अलावा चौखड़ा स्कूल के हेड मास्टर वीरेंद्र कुमार केशव की भूमिका भी बेहतर शैक्षणिक वातावरण कायम करने में अहम रही है.वीरेंद्र केशव का नाम भी जिला से चयनित कर राज्य सरकार को भेजा गया था.
इनके द्वारा आनंददाई शैक्षणिक गतिविधियां, नवाचार, शून्य खर्च पर विज्ञान मॉडल, दीवार अखबार, जूम ऐप के जरिये बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई, पुस्तकालय निर्माण, अधिगम सामग्री का उपयोग, आपदा मॉक ड्रिल, ई लॉट्स ऐप के उपयोग, महत्वपूर्ण दिवस पर कार्यक्रम, बाल संसद का माक पार्लियामेंट, विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन, सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता आदि गतिविधियों का आयोजन किया जाता रहा है. कोरोना काल में विद्यालय बंद रहने के दौरान श्री साहू एवं सिन्हा द्वारा ऑनलाइन क्लास का आयोजन भी किया गया था. शिक्षकों ने घूम-घूम कर बच्चों के अभिभावक से एप्प डाउनलोड कर बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखने का काम किया. इतना ही नहीं जितेंद्र व शिक्षक सुमंत कुमार ने एक क्यूआर कोड बनाया. जिसके जरिये बच्चों को लाभ पहुंचाने का प्रयोग किया जा रहा है. श्री सिन्हा ने बताया कि क्यूआर कोड के जरिए लोग सीधे ग्रुप से जुड़ सकते हैं।
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