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अगस्त क्रांति के हीरो डॉ अनुग्रह नारायण सिंह Bihar Vibhuti Dr Anugrah Narayan Sinha थे बिहार के पहले विक्त, श्रम, उपमुख्यमंत्री

सेनानी अनुग्रह नारायण सिंह

 About Bihar Vibhuti Dr Anugrah Narayan Sinha story
नौ अगस्त, 1942 दिन रविवार..भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को निर्णायक मोड़ देनेवाला क्रांतिकारी ऐतिहासिक दिन. पूरे देश की तरह बिहार में भी अंग्रेजों भारत छोड़ों के नारों के साथ आंदोलन की आग धधक उठी. सड़कों पर देश भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा. देखते ही देखते लाठीबाजी, गोलीबारी और बमों के धमाके शुरू हो गये. साथ ही शुरू हुआ गिरफ्तारी का सिलसिला. इस उत्तेजक माहौल में जिलाधिकारी डब्लू जी आर्चर स्वयं राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार करने सदाकत आश्रम पहुंच गये. राजेंद्र प्रसाद अस्वस्थ थे, फिर भी उन्हें बांकीपुर जेल ले जाया गया. उनके साथ औरंगाबाद के लाल डॉ अनुग्रह नारायण सिंह भी गिरफ्तार कर लिए गये. अनुग्रह बाबू के मित्र श्रीकृष्ण सिंह, मथुरा प्रसाद, फूलन प्रसाद वर्मा सहित सभी बड़े नेताओं की भी गिरफ्तारी हुई. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर आंदोलन में अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी.

 जिले के लाल और स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी अनुग्रह नारायण सिंह महात्मा गांधी के साथ प्रारंभिक चरण में चंपारण आंदोलन से साथ जुड़े और अंग्रेजों को देश से खदेड़ कर दम लिया. इसके बाद वो बिहार के पहले उप-मुख्यमंत्री व वित्त मंत्री भी बने. अनुग्रह बाबू अपनी सादगी के कारण दूसरे नेताओं से बिल्कुल अलग थे. वे सरकारी यात्रा पर जाने पर भी अपनी ही तनख्वाह से भोजन किया करते थे. यहां तक कि प्रदेश के दूर-दराज इलाके, जहां जाना आम लोगों के लिए भी सुरक्षित नहीं समझा जाता था वहां भी बगैर किसी सुरक्षा के यात्रा करते थे.अपनी शालीनता के कारण स्थानीय लोगों के साथ आसानी से घुल मिल जाते थे.

 स्वाधीनता संग्राम में चंपारण आंदोलन से आजादी तक का तय किया सफर औरंगाबाद जिले के पोइवां गांव में 18 जून 1887 को जन्मे अनुग्रह बाबू का बचपन ग्रामीण माहौल में बिल्कुल किसी आम बच्चे की तरह बीता था. इसके बाद कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्होंने अलग-अलग हस्तियों से मिले. पटना कॉलेज में पढ़ते हुए उन्होंने उस दौर के नेताओं का भाषण सुना और प्रभावित होकर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े. सुरेंद्रनाथ बनर्जी और योगीराज अरविंद के कार्यकलापों और व्याख्यानों का उन पर समुचित प्रभाव पड़ा. उन्होंने बिहारी छात्र सम्मेलन में भी काम किया. उन्होंने चंपारण में होने वाले गांधी जी के पहले सत्याग्रह आंदोलन से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. उन्होंने महात्मा 
गांधी और डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ खुद को राष्ट्र व समाज की सेवा में झोक दिया. नील आंदोलन के दौरान कुछ वैसे वकीलों की जरूरत थी जो निर्भीकता पूर्वक काम कर सकें और समय आने पर जेल जाने के लिए भी तैयार रहें. ऐसे में ब्रजकिशोर बाबू के प्रोत्साहन राजेंद्र बाबू के साथ अनुग्रह बाबू भी तत्पर हो गये और पेशा की चिंता किये बगैर अंग्रेजों के खिलाफ लोहा ले लिया. नमक सत्याग्रह में भी अनुग्रह बाबू ने अहम अपनी भूमिका निभायी.

भूकंप के बाद की सेवा : अनुग्रह बाबू लगातार गांधी जी व राजेंद्र बाबू समेत कई महान क्रांतिकारियों के हमेशा साथ रहे. इस साथ ने उनकी सोच पर असर डाला और वे लगातार आजाद देश के सपने के लिए काम करते रहे. फिर चाहे वो नमक सत्याग्रह आंदोलन हो या फिर स्थानीय लोगों की कोई जरूरत. दरअसल नमक आंदोलन के दौरान अनुग्रह बाबू जेल में थे, तभी बिहार में प्रलय मचाने वाला भूकंप आया. साल 1934 में आयी इस आपदा ने राज्य में तबाही मचा दी. आधिकारिक तौर पर सात हजार से ज्यादा मौतें हुईं और लाखों बेघर हो गये. जेल से निकलते ही उन्होंने तुरंत पीड़ितों की देखभाल का जिम्मा संभाल लिया. वे शहर-शहर दौरा कर लोगों की समस्याएं सुलझाने लगे.

बिहार विभूति के नाम से हुए प्रसिद्ध

स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अनुग्रह बाबू ने अनेकों काम किये.खासतौर पर श्रमिकों व किसानों के हित में काफी काम किया. उन्होंने बिहार केंद्रीय श्रम परामर्श समिति बनायी.इसदौरान जो नियम बनाये गये, वो आज भी प्रासंगिक माने जाते हैं. अनुग्रह बाबू के भतीजे व पूर्व मुखिया कौशलेंद्र प्रताप नारायण सिंह ने बताया कि उन्होंने खेती-किसानी के आधुनिकीकरण पर जोर दिया. पूसा का कृषि अनुसंधान फार्म उनकी ही देन है. खेती के नये तरीकों पर वे लगातार जोर देते और इस बारे में कृषकों से खुल कर बात किया करते थे. उनके कार्यकाल में बिहार में उद्योग-धंधे तेजी से बढ़े और लोगों को रोजगार मिला.औरंगाबाद जिले के किसानों के लिए उन्होंने नदियों में चेकडैम का निर्माण कराया, जिसका लाभ हजारों किसानों को मिल रहा है. अपने ऐसेही योगदानों के कारण उन्हें बिहार विभूति की उपाधि मिली.

 बिहार के पहले वित्त, श्रम व उपमुख्यमंत्री 

अनुग्रह बाबू सभी आंदोलनों में निडर होकर आगे रहते थे. राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सभाएं आयोजित करते थे.आजाद भारत की मांग के जोर पकड़ने के बाद साल 1937 में वे बिहार प्रांत के वित्त मंत्री बने.20 जुलाई 1937 को पदभार ग्रहण करने के बाद 31अक्तूबर 1939 तक पद पर बने रहे. साल 1946 में जब दूसरा मंत्रिमंडल बना तब वे वित्त, श्रम व बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री बने.दो अप्रैल 1946 को पदभार ग्रहण करने के बाद पांच जुलाई 1957 तक पद पर बने रहे.पांच जुलाई 1957 को उनका निधन हो गया.

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